2. सर्द आग

एक अंधेरी रात को में सड़क किनारे चल रहा था। यह बात मालूम हुई कि ये मेरा सपना है जब मैंने पाया कि ऊपर साफ़ आसमान में हर एक एक तारे की जगह मेरी ही आँखें बनी हुई है जो मेरी ही ओर देख रही है। ये रास्ता पहाड़ की ढलान पर है और इसके दोनों ओर घर व पेड़ो की कतार है। मिस्टर एंड मिसेज जॉन्सन; इनका घर लकड़ी का बना है। घर बाहर से नया और साफ सुथरा लगता है। घर की चौखट पर एक गहरे भुरे रंग का कुत्ता सोया हुआ है और आगे गेट तक पौधों का बगीचा सजा हुआ है।
श्री मनोज पंडित; यह घर ईट सीमेंट से बना हुआ लगा। घर की हालत भी थोड़ी बत्तर थी। यहां तक कि नेम प्लेट पर एक छोटी मकड़ी जाला बुनने में लगी थी। धीरे धीरे मनोज जी का नाम जाले में ढकता चला गया। मैं आगे बढ़ गया।
और यह क्या? तीसरे घर पे कोई नाम नहीं था। घर बिल्कुल मामूली सा ही था, बाकी घरों की ही तरह, बस घर दीवारों पर से सीलन के कारण चुने की पपड़ी उतर रही थी और प्लेट पर नाम नहीं था। मैं रुका और मेरे साथ साथ हवा भी थम गई। एक स्थिरता का एहसास हुआ। थोड़ी देर बाद मैंने आगे बढ़ने का फैसला किया। जैसे ही मैंने अगला कदम रखा,सभी रोडलाइट्स बंद हो गई। कुछ घरों की खिड़कियों में से आ रही रोशनी भी अब गायब हो चुकी थी। बस पत्तों के बीच में से चांदनी बरस रही थी। मेरे माथे पर पसीना आने लगा। अगला कदम चलने के लिए जब मैंने पाव उठाए तो एक चूं की आवाज मेरे कानों में गूंजने लगी।चूंऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ। जैसे–जैसे पांव नीचे करता, ये आवाज और तीखी होने लग जाती। मेरे पांव नीचे रखते ही ये गूंज एक धमाके के साथ बंद हो गई। सभी घरों की खिड़कियों के कांच टूट चुके थे। अब मैं इस पहेली में उलझ गया। इसे समझने की कोशिश में मैंने जब एक कदम पीछे रखा तो सभी खिड़कियां वापिस पहले जैसी हो गई। मैंने हिम्मत जुटाई और एक साथ दो कदम चल दिया। इस बार कांच के साथ साथ सभी पेड़ों की पत्तियां भी नीचे बिखर गई। रात अब नंगी लगने लगी थी। चांद की सारी रोशनी मेरे शरीर को भेद रही थी जैसे मैं एक सर्द आग में जल रहा हूं। मेरे माथे पर आ रहे पसीने ने अब मेरी पलकों को छुआ। घबराकर मैने झट से तीन कदम पीछे ले लिए। सब कुछ वापिस पहले जैसा हो गया। पेड़ो पर पत्तियां थी, खिड़कियां चमक रही थी, सड़क भी रोडलाइट से जगमगा रही थी। मैं मेरी बायी ओर मुड़ा तो उसी घर के सामने था, जिसकी प्लेट पर कोई नाम नहीं था। अब भी नहीं।
तभी अचानक आसमां की सभी आँखें बंद होने लग गई और मेरे आसपास का वातावरण पिघल कर मुझ में समा ने लग गया। मैं समझ गया कि मेरी नींद खुल रही है। जब बिस्तर पर मेरी आंख खुली, सुबह हो चुकी थी। पर्दों के बीच में से सूरज की रोशनी मेरी आंखों पर पड़ रही थी। मैं उठ कर बैठा, और पास की मेज पर से पानी की ग्लास लेकर पीने लगा। इस वक्त मेरे मन में बस एक सवाल था, "वह घर किसका था?"